आंत प्रज्ञ चिंतन
आंत- प्रज्ञ चिंतन की अवधारणा जीन पियाजे मे अपने सिध्दांत संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत में दी थी ।
बालकों में यह अवस्था उनके द्वारा दिए गए विकास के विभिन्न स्तरों में पूर्व संक्रियात्मक अवस्था में पायी जाती है।
आंत प्रज्ञ चिंतन का काल जीन पियाजे ने 4 वर्ष से लेकर 7 वर्ष तक बताया।
जब बालक 4 वर्ष की अवस्था में पहुंचता है तो यह अवस्था आंत- प्रज्ञ चिंतन की अवस्था कहलाती है।
जीन पियाजे ने बताया कि इस अवस्था में बालक जब बिना कोई तर्क किए बड़े व्यक्तियों द्वारा माता पिता द्वारा बताए गए विचारों को धारण कर लेता है।
अर्थात इस में बालक अन्य व्यक्तियों द्वारा गयी जानकारी को बिना किसी तर्क के ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेता है और कोई बहस न करता है।
इस अवस्था में बालक का मस्तिष्क कोई भी बात जल्दी स्वीकार कर लेता है।