कुण्ठा या भग्नाशा क्या है? What is frustration
कुण्ठा या भग्नाशा एक ऐसी मानसिक व भावात्मक स्थिति है जिसमें व्यक्ति अंसतोष का भाव महसूस करता है और नकारात्मक हो जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति दैनिक क्रियाओं के दौरान अनेक कार्य करता और उनमें वह कुछ कार्यों को आसानी से करते हुए आशातीत सफलता प्राप्त कर लेता है किन्तु यदि किसी कारणवश वह वांछित सफलता पाने में असमर्थ होता है तो उसके मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न होने लगते हैं और जब यह नकारात्मक भाव उसके मन में स्थाई होने लगते हैं तो उसकी ऐसी मानसिक स्थिति को कुंठा कहा जाता है और जिस व्यक्ति में यह कुंठा का भाव उत्पन्न होता है उसे कुंठित व्यक्ति कहा जाता है।
प्रायः देखा जाता है कि आज के समाज में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं एवं अन्य व्यक्तियों के नजरिये से स्वंय को देखता है और कोई भी कार्य करते हुए जरूरत से अधिक सफलता या लक्ष्यपूर्ति की अपेक्षा रखता है और वह अति महत्वाकांक्षी हो जाता है।
यदि उस व्यक्ति को अपेक्षा के अनुरूप सफलता मिल जाती है तो वह जीवन में संतोष और सुख का भाव महसूस करता है।यदि उसे वांछित सफलता नहीं मिल पाती तो उस व्यक्ति के मन में असंतोष का भाव उत्पन्न होता है और यह असंतोष और नकारात्मक भाव चिरकाल तक रहने पर वह मानसिक द्वंद्व का शिकार हो जाता है। इस स्थिति में उसे अपने चारों तरफ का वातावरण नकारात्मक ही दिखाई देने लगता है और उसमें आशावादी सोच और सकारात्मक भाव न के बराबर रह जाते हैं।
प्रायः देखा जाता है कि समाज में कुंठित व्यक्ति नशे का सेवन करने लगते हैं और हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं जिससे उनको दूर रहना चाहिए।।
डॉ एसपी गुप्ता द्वारा लिखित किताब उच्चतर शिक्षा मनोविज्ञान में कुंठा उत्पन्न होने के निम्न कारण बताए हैं ।
कुण्ठा के कारण
1- भौतिक कारक
2- व्यक्तिगत कारक
3- सामाजिक कारक
4- आर्थिक कारक
5- नैतिक कारक
6- विषम परिस्थितियां
7- असंगत मांग व लक्ष्य
1- भौतिक कारक प्रायः भौतिक कारक मनुष्य की दैनिक व जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं फिर भी कुछ भौतिक कारक व्यक्ति की जरूरतों और प्रेरकों की पूर्ति में बाधक बनते हैं। यही भौतिक कारक मनुष्य की कुंठित प्रवृति का कारण बनते हैं ।
2- व्यक्तिगत कारक व्यक्ति की खुद से जुड़ी आवश्यकताएं और प्रेरक यदि व्यक्ति को प्राप्त नहीं हो पाते तो बाद में उस व्यक्ति में कुंठा का भाव जागृत हो जाता है।
3- सामाजिक कारककोई व्यक्ति जो सामाजिक दृष्टि से अधिक अपेक्षाएं और महत्वाकांक्षाएं रखता है और समय रहते अगर उसकी अपेक्षाएं संतुष्ट नहीं हो पाती तो वे व्यक्ति कुंठित हो जाता है।।
4- आर्थिक कारक किसी व्यक्ति में कुंठा उत्पन्न होने का प्रमुख कारण है।
प्रायः देखा जाता है कि उन व्यक्तियों में कुंठा का भाव ज्यादा पाया जाता है जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती यदि उन व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक और संसाधन कम उपलब्ध होते हैं तो ऐसे व्यक्ति कुंठित हो जाते है।
5- विषम परिस्थितियां जब तक व्यक्ति साधारण और उसकी प्रकृति के अनुकूल परिस्थितियों में बना रहता है तब तक वो सहज भाव महसूस करता रहता है किंतु यदि उसके सामने कोई विषय परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें उसने कभी सर्वाइव नहीं किया तो वह परिस्थिति उस व्यक्ति की कुंठा के रूप में परिलक्षित होती है।
6- असंगत मांग व लक्ष्य यह कारक किसी व्यक्ति के कुंठित होने का महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि आजकल कुंठा का प्रमुख कारक यही है कि व्यक्ति जरूरत से अधिक और उम्मीद के विपरीत महत्वाकांक्षाएं रखता है। उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उस व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के विरोधों का सामना करना पड़ता है और यदि वह उन विरोधों से हार जाता है तो उसमें निराशा का भाव उत्पन्न हो जाता है और उसकी यह स्थिति कुंठा या भग्नाशा कहलाती है।
Src – Higher Educational psychology by Dr. SP Gupta