आईपीएस नवनीत सिकेरा का ह्रदय स्पर्शी संस्मरण Navniet Sekera

Navniet Sekera

दादा जी , आज आप फिर याद आये

Pic credit-  IPS Navniet Sekera

एसएसपी के कार्यालय में सामान्यतः काफी भीड़ रहती है और बहुत लोग मिलने आते हैं , कुछ अपनी समस्याओं को लेकर, कुछ दूसरों समस्याओं को लेकर , कुछ सिर्फ ये दिखाने के लिए कि फलां अफसर से उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध हैं , कुछ नए सम्बन्ध बनाने आते हैं और आते ही इतनी चासनी से ओतप्रोत बातें करतें हैं कि बस पूछो मत , कसम से ऐसे ऐसे झूठे तारीफों के पुल बाँधते हैं और इतने लम्बे लम्बे कि झेले नहीं जाते , कभी सोचता हूँ ये पुल रियलिटी में बना दिए गए होते बड़ा लाभ होता । एक मजेदार बात और बताता हूँ कुछ होती हैं विभागीय बहनें , चौंक गए ना , मैं भी चौंक गया था जब ऐसी एक बहन मेरे ऑफिस में आयीं , मैंने पूछा जी बताइये तो बोली रक्षा बंधन आ रहा है तो मैं आपको राखी बाँधने आऊँगी , मैंने कहा पर मैं तो आपको जानता तक नहीं हूँ , तो बड़े कॉन्फिडेंस से बोली आपसे पहले वाले थे उनको भी राखी बाँधती थी , उनसे पहले वाले थे वोह बड़े भाई से ज्यादा थे………..
उनका लॉजिक मेरे सर के ऊपर जा रहा था , तभी मेरे स्टेनो ने फ़ोन मिलाकर कहा , सर ये विभागीय बहन हैं इनसे जितनी जल्दी हो सके मुक्ति पालो वार्ना पूरे साल नेग देना पड़ेगा , मैं समझ गया और आवश्यक मीटिंग के बहाने वहाँ से खिसक लिया

मेरा नियम था कि गाँव के लोगों पहले मिलता था,इस बात से बड़ी गाडी से आने वाले बहुत नाराज़ भी जाते थे , और बाहर निकल कर अपने कनेक्शंस को फ़ोन लगाना , और अपने लिए कहलवाना रोज़ की ही बात थी । मेरा लॉजिक बड़ा सीधा सा था , गाँव का आदमी सुबह ही चल दिया होगा वड़ी आस से चला होगा कि आज अपनी बात बड़े अफसर से कहनी है, नहीं सुबह चला होगा कुछ खाया होगा या नहीं , ट्रेक्टर टेम्पो बस पता नहीं कितने साधन बदल कर , दो रोटी कपड़े में लपेट कर बड़ी उम्मीद से मेरे ऑफिस आया होगा , और कई बार सोचा होगा तब एक बार निकल पाया होगा , तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं उसकी बात पहले सुनू और हर संभव मदद करूँ
कुछ लोग मेरी इस आदत से चिढ़ जाते जाते थे, भाई इतना भारी आदमी ( खा खा के मोटा ) और इतनी भारी भरकम गाड़ी से , भारी भरकम फ़ौज फाटा के साथ , बड़ा सा गुलदस्ता लिए , मिठाई के चार छः डब्बे लिए, चेहरे पर ज़बरदस्ती की मुस्कराहट लिए अपनी खीसें दिखाते हुए , ताम झाम पूरा पर ये पगला पुलिस वाला कैसा जो उन पर ध्यान ही नहीं दे रहा , और गाँव से आये , मैले कुचले कपडे पहनें , धंसी हुई आँखे , झुर्रियों से भरा चेहरा , ऐसे बदबू मार रहे गाँव वालों से बात कर रहा है , उनकी बातें ध्यान से सुन रहा है और उनकी समस्या का हल भी कर रहा है ,
उन्ही में से एक बुजुर्ग ने कहा की उनका एक ही लड़का है और उसकी घरवाली मुझे खाना भी नहीं देत्ती , मैंने पूछा कोई मोबाइल है उसके पास , तो उन्होंने अपने पोटली में से एक फटा हुआ कागज निकाला और कहा शायद यही होगा , मैंने तुरन्त ही अपने मोबाइल से उसके लड़के को फ़ोन मिला दिया और खूब खरी खोटी सुनाई , मैंने कहा कि तू अपने बाप को नहीं खिला सकता तो मना कर दे , मैं रख लूँगा इनको अपने घर में , मेरा घर बहुत बड़ा है , लड़का तो सकपका गया , उसकी हालत ख़राब , वोह उसी वक़्त अपनी बीबी को खरी खोटी सुनाने लगा । मैंने अपने PRO को नोट कराया कि एक महीने बाद फिर से खोज खबर कर लेना ।
बात आई गयी हो गयी , फिर मुज़फ्फरनगर से मेरा ट्रान्सफर , बहुत बड़ी सँख्या में लोग मुझे विदाई देने आये , घर से रेलवेस्टेशन मुश्किल से आधा किलोमीटर था लेकिन दो घण्टे से ज्यादा समय लग गया स्टेशन तक पहुँचते पहुँचते , कई बार बहुत भावुक पल आये पर मैंने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा । पूरा स्टेशन भरा हुआ था तिल रखने की जगह नहीं थी, ट्रैन धीरे धीरे चल पड़ी , मैं गेट पर खड़ा सबको हाथ हिलाकर अभिनन्दन करता रहा , धीरे धीरे प्लेटफार्म ख़त्म होने को आया और मैंने देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति हाथ जोड़े खड़ा है और जब मैंने उसे देखकर हाथ हिलाया तो मुस्कराकर उसने भी हाथ हिलाया , तभी मेरे जहन में आया कि इनको कहीं देखा हुआ है , पलक झपकते ही याद आगया कि ये तो वही बुजुर्ग हैं जिनकी मैंने एक बार मदद की थी
एक बुजुर्ग जो ठीक से खड़े भी नहीं हो पाते थे , आज अपने गाँव से इतनी दूर एक अनजान इंसान को विदाई देने के लिए भीड़ से दूर प्लेटफार्म के एक किनारे पर तनहा खड़ा था, मेरी भावनाओं को नियंत्रित करने की क्षमता जवाब दे चुकी थी , कोई देख न ले तेजी से बाथरूम में घुस गया , और आँखों में ख़ुशी के आँसू छलछला गए , मैंने अपने दादा (जिनको मैंने कभी नहीं देखा ) को याद किया कि शायद वह मेरे दादा ही थे , जो किसी बहाने से मुझसे मिलने आये थे।
यह संस्मरण 2016 में पोस्ट किया था, मित्रों के आग्रह पर पुनः पोस्ट कर रहा हूँ
साभार नवनीत सिकेरा सर की फेसबुक वॉल से …
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