तांत्या टोपे कौन थे‍| उनको फांसी कब दी गयी Tantya tope kaun the

तांत्या टोपे कौन थे

तांत्या टोपे को फांसी कब दी गयी जानिए
तांत्या टोपे को फांसी 18 अप्रैल 1859 को दी गयी थी।
आगरा मुंबई मार्ग पर ग्वालियर से 100 किमी दूर दक्षिण में शिवपुरी के आस-पास ग्रामीणों की भीड़ गुमसुम पहाड़ियो पर बढ़ती जा रही थी।
ठीक उसी तरह जैसे सूरज आसमान पर चढ़ता जा रहा था।
गर्म लू के थपेड़े सवेरे से ही मौसम को तपा रहे थे फिर भी हजारो की संख्या में गोरे सिपाही इलाके में टिड्डी दल की भांति फैले हुए थे। भारी पहरे की बीच भय-त्रस्त अंग्रेज अधिकारी न्याय के खूी नाटक का पर्दा उठा रहे थे।चाटुकार और गद्दार लोग पीछे पीछे दुम हिलाते हुए इस जघन्य कृत्य में उनका साथ दे रहे थे।
विशाल वृक्ष के नीचे काला भीमकाय जल्लाद खड़ा था।मोटी शाखा पर फांसी का फंदा झूल रहा था। सारा मैदान सैनिको से तथा आसपास की पहाड़िया आम जन से भर चुकी थी।चुपचाप सांस रोके हुए विशाल जनसमूह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का सूर्यास्त देख रहा था। एक कैदी बेड़ी और हथकड़ियो में जकड़ा हुआ फांसी के तख्ते के पास लाया गया। गोरे सैनिकों के शस्त्रों के घेरे में वह फांसी के तख्ते के निकट आ पहुंचा।
भारी बेड़ियों की धमक से मैदान भी दहलने लगा। दो लुहारो ने आकर उसकी बेड़िया काटी ठिगने कद के इस गठीले कैदी ने हाथ उठाकर उपस्थित जनसमुदाय का अभिवादन किया।
फांसी के तख्ते पर पहला कदम रखने से पहले वह झुका धरती मां की पवित्र मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाया ।इस समय गोरे सिपाही इस कैदी को ओर बंदूको का निशाना साधे सावधान खड़े थे। उन्हे आदेश था यदि कैदी भागने की कोशिश करे तो गोली मार दी जाए।
तात्यां टोपे ने हंसते हुए अपने हाथ में फांसी का फंदा गले में डाला वह मौत के फंदे पर झूल गया। इस प्रकार भारत मां का एक लाल शहीद हुआ।

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